सरपंच हरि किशन जाट की सोच और प्रयास ने सर्व समाज के श्मशान को मॉडल के रूप में विकसित किया है

अजमेर. श्मशान घाट का नाम सुनते ही मन में भय की तस्वीर उभरने लगती है. ये वो जगह है, जहां आमतौर पर लोग जाने से कतराते हैं. खासतौर पर रात के समय श्मशान घाट पर कोई नहीं जाना चाहता, लेकिन अजमेर में एक ऐसा श्मशान घाट है. जहां लोग सैर सपाटे के लिए जाते हैं. शहर के निकट सराधना ग्राम पंचायत के सरपंच हरि किशन जाट की सकारात्मक सोच ने गांव के सर्व समाज के श्मशान की कायापलट कर दी. 40 बीघा ऊबड़- खाबड़ भूमि को ऐसा विकसित किया कि सराधना गांव का मुक्तिधाम नजीर बन गया.
अजमेर शहर से 20 किलोमीटर स्थित: अजमेर-ब्यावर हाइवे के दोनों और बसे सराधना गांव में पंचायत की सक्रियता से सभी मूलभूत विकास कार्य हुए है. सरपंच हरि किशन जाट की सोच और प्रयास ने सर्व समाज के श्मशान को मॉडल के रूप में विकसित किया है.सरपंच हरि किशन जाट बताते हैं कि गांव के 40 बीघा क्षेत्र में श्मशान भूमि है जो कभी वीरान और पथरीली जमीन थी. यहां लोग मरे हुए जानवर फेंका करते थे. दाह संस्कार के लिए आने वाले लोगों को बदबू और अव्यवस्था का सामना करना पड़ता था. श्मशान घाट पर पानी नहीं था और न ही छांव के लिए कोई ज्यादा हरियाली थी. हर तरफ पथरीली जमीन और कटीली झाड़ियां थी. सरपंच ने कहा कि सर्व समाज के श्मशान की भयावह स्थिति को बदल दिया गया है. अब लोग श्मशान में आने से डरते नहीं, बल्कि यहां सुबह शाम सैर करने आते हैं. गांव में आने वाले मेहमानों को भी यहां सैर के लिए अब लाया जाने लगा है.
छायादार पौधे बनेंगे सौगात : सरपंच हरि किशन जाट ने बताया कि श्मशान भूमि की कायापलट का बीड़ा ग्रामीणों के सहयोग से उन्होंने उठाया. जिला प्रमुख सुशील कंवर पलाड़ा, विकास अधिकारी विजय सिंह ने भी शमशान के विकास में सहयोग किया. जाट ने बताया कि गांव में हर जाति, धर्म और समाज के लोगों के यहां पर श्मशान है. इस जमीन से कटीली झाड़ियां हटवा कर करीब 15 सौ से भी अधिक छायादार पौधे लगाए गए हैं. इन पौधों को बड़ा करने के लिए पानी की जरूरत थी. ऐसे में डेढ़ किलोमीटर दूर बोरिंग करवा कर यहां तक पानी लाया गया है. हर 100 मीटर पर पानी की व्यवस्था की गई, ताकि पौधों को पानी देकर पोषित किया जा सके.

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